Shani Stuti: शनिवार को इस विधि से करें शनि स्तुति, शनि दोष की मुक्ति के लिए करे शनि स्तुति

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  Shani Stuti:  शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित है। इनको न्याय और कर्मफल के दाता कहा जाता है। जो लोग इस दिन विधि विधान से शनिदेव की पूजा करते हैं उनके जीवन में सफलता और सुख-समृद्धि आती है। आइए जानते है शनि स्तुति और इसका महत्व। शनि देव स्तुति नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च । नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ॥ नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च । नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।। नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम: । नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते ॥ नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम: । नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने ॥ नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते । सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ॥ अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते । नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ॥ तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च । नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ॥ ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे । तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥ देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा: । त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत: ॥ प्रसाद कुरु...

अघोरी कहां और कैसे करते हैं साधना, कैसा होता है इनका स्वभाव, जानें इनके बारे में सबकुछ

 

अघोरी कहां और कैसे करते हैं ?




Aghori Koun Hote hain : अघोरी नाम सुनते
ही सभी के मन में एक ऐसी तस्वीर उभर कर आती है, जिसकी लंबी-लंबी जटाएं हों, जिसका शरीर राख में लिपटा हो और जिन्होंने मुंड मालाएं गले में धारण की हों. माथे पर चंदन का लेप और उसके ऊपर उभरा हुआ तिलक. यह डरावना स्वरूप हर किसी के मन में भय पैदा कर सकता है परंतु इनके नाम का अर्थ विपरीत होता है. अघोरी नाम का अर्थ होता है, एक ऐसा व्यक्ति जो सरल है, डरावना नहीं है, जो किसी से भेदभाव नहीं करता. यह अक्सर आपको श्मशान के सन्नाटे में जाकर तंत्र क्रिया करते हुए देखे जा सकते हैं



एक बाबा को अघोरी का दर्जा तभी दिया जाता है, जब वह मन से प्रेम, नफरत, बदला, जलन आदि सभी तरह के भाव से मुक्त हो जाए.

कई लोग अघोरी बाबाओं को डरावना समझते हैं, लेकिन वास्तव में अघोरी बाबा डरावने नहीं होते हैं, बल्कि इनकी वेशभूषा डरावनी होती है. साथ ही ये बहुत ही सरल होते हैं और किसी भी चीज में भेदभाव नहीं करते हैं. कहा जाता है कि अघोरी बाबा लोगों या दुनिया की किसी भी चीज में कोई रुचि नहीं रखते हैं. इनकी अपनी अलग दुनिया होती है.



अघोरी बाबा इस धरती की हर चीज को भगवान शिव और मां काली का अंग मानते हैं. यही कारण है कि अघोरी बाबा के जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य भगवान शिव और मां काली को प्रसन्न कर के उनसे शक्तियां हासिल करना होता है. अघोरी बाबा, मां काली की पूजा  भैरवी, बगलामुखी और धूमवती तीन स्वरूपों में करते हैं. जबकि, भगवान शिव को वे भैरव, महाकाल और वीरभद्र के रूप में पूजते हैं.

अघोरी बाबाओं का जीवन दूसरे संत-साधुओं के मुकाबले काफी विपरीत होता है, क्योंकि साधु संतों को मांस-मदिरा खाने की अनुमति नहीं होती है. जबकि, कहा जाता है कि अघोरी बाबा मृत मानव के मांस का सेवन करने के साथ-साथ उनके खून का सेवन भी करते हैं. गाय के मांस को छोड़कर वे हर जानवर के मांस का सेवन कर सकते हैं. उनके लिए कोई सीमा निर्धारित नहीं होती है.

अघोरी बाबा बनने वाले व्यक्ति को हर चीज के प्रति एक समान भावना रखने की शिक्षा दी जाती है, ताकि अघोरी बाबा अपने-पराए का फर्क किए बिना ही लोगों के भले के लिए अपनी विद्या इस्तेमाल कर सकें.



अघोरी बाबा अपनी ज्यादातर साधना श्मशान घाट में रहकर करते हैं. उनका मानना है कि अंधेरी रात में श्मशान में जलती हुई चिताओं और कंकालों के बीच बैठकर साधना करने से शीघ्र ही फल मिलता है. मान्यता है कि अघोरी बाबा श्मशान घाट में श्मशान साधना, शव साधना और शिव साधना करते हैं.

कहा जाता है कि अघोरी बाबा आम लोगों से दूरी बनाकर रहते हैं. स्वभाव से यह बाबा बहुत जिद्दी होते हैं और जल्दी किसी को आशीर्वाद भी नहीं देते हैं. लेकिन जिस व्यक्ति को इनका आशीर्वाद मिल जाए उसका जीवन सुखमय हो जाता है. यही कारण है कि कुंभ के मेले में अघोरी बाबा आकर्षण का केंद्र होते हैं.
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