कुंडली में शनि की स्थिति तय करती है, आप राजा बनेंगे या रंक चलिए जानते हैं । कैसे ?

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 शनि ग्रह कुंडली के 12 घरों में से किसी भी घर में स्थित हो सकते हैं। जिस घर में शनि होते हैं, वहां उस घर के प्रभावों पर विशेष रूप से उनका असर होता है। कुंडली के प्रत्येक घर का अपना महत्व होता है, और शनि की उपस्थिति उस घर से संबंधित क्षेत्रों पर सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। यहां 12 घरों में शनि की उपस्थिति का सामान्य प्रभाव दिया गया है: 1. **पहला घर (लग्न भाव)**      शनि यहां होने पर व्यक्ति गंभीर, मेहनती और स्थिर स्वभाव का होता है, लेकिन कभी-कभी आत्मविश्वास में कमी और स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं। 2. **दूसरा घर (धन भाव)**      शनि दूसरे घर में होने पर धन की स्थिरता और आय में देरी हो सकती है, लेकिन धैर्य से काम करने पर धन संचित होता है। परिवार से संबंधों में कुछ दिक्कतें हो सकती हैं। 3. **तीसरा घर (पराक्रम भाव)**      इस घर में शनि व्यक्ति को साहसी और मेहनती बनाता है, लेकिन भाई-बहनों से कुछ दूरी हो सकती है। यात्रा और लेखन से जुड़े कार्यों में सफलता मिल सकती है। 4. **चौथा घर (सुख भाव)**      शनि चौथे घर में होने पर घर, वाहन, और संपत्ति से जुड़े मामलों में देरी हो

2023: 29 सितंबर से शुरू होगा पितृ पक्ष, जानें इसका धार्मिक महत्व, तिथियां और विधि

 

2023: 29 सितंबर से शुरू होगा पितृ पक्ष, जानें इसका धार्मिक महत्व, तिथियां और विधि



इस बार पितृ पक्ष की शुरुआत 29 सितंबर से हो रही है और 14 अक्‍टूबर 2023 को यह समाप्‍त होगा. पितृ पक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होते हैं और अश्विन मास की अमावस्‍या तक चलते हैं. इसे सर्व पितृ अमावस्‍या कहते हैं. अधिक मास की वजह से इस साल सावन दो महीने का है.

श्राद्ध श्रद्धा से जुड़ा हुआ शब्द है.पितृपक्ष में तर्पण और श्राद्ध करने से पूर्वज प्रसन्न होते हैं. ऐसा पितरों के प्रति अपना सम्मान प्रकट करने के लिए किया जाता है. पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किए जाते हैं. मान्यता है कि पितृ पक्ष में श्राद्ध या पितरों को तर्पण विधि विधान से देने से पितृ प्रसन्न होते हैं और पितृदोष समाप्त हो जाता है. शास्त्रों के अनुसार जो परिजन अपना शरीर त्याग कर चले जाते हैं उनकी आत्मा की शांति के लिए सच्ची श्रद्धा के साथ तर्पण किया जाता है, इसे ही श्राद्ध कहा जाता है

इस बार पितृ पक्ष की शुरुआत 29 सितंबर से हो रही है और 14 अक्‍टूबर 2023 को यह समाप्‍त होगा. पितृ पक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होते हैं और अश्विन मास की अमावस्‍या तक चलते हैं. इसे सर्व पितृ अमावस्‍या कहते हैं. अधिक मास की वजह से इस साल सावन दो महीने का है. इसकी वजह से सभी व्रत-त्‍योहार 12 से 15 दिन देरी से पड़ेंगे. आमतौर पर पितृ पक्ष सितंबर में समाप्‍त हो जाते हैं लेकिन इस साल पितृ पक्ष सितंबर के आखिर में शुरू होंगे और अक्‍टूबर के मध्‍य तक चलेंगे.

श्राद्ध की तिथियां




29 सितंबर – पूर्णिमा श्राद्ध30 सितंबर – प्रतिपदा श्राद्ध , द्वितीया श्राद्ध01 अक्टूबर – तृतीया श्राद्ध02 अक्टूबर – चतुर्थी श्राद्ध03 अक्टूबर – पंचमी श्राद्ध04 अक्टूबर – षष्ठी श्राद्ध05 अक्टूबर – सप्तमी श्राद्ध06 अक्टूबर – अष्टमी श्राद्ध07 अक्टूबर – नवमी श्राद्ध08 अक्टूबर – दशमी श्राद्ध09 अक्टूबर – एकादशी श्राद्ध11 अक्टूबर – द्वादशी श्राद्ध12 अक्टूबर – त्रयोदशी श्राद्ध13 अक्टूबर – चतुर्दशी श्राद्ध14 अक्टूबर – सर्व पितृ अमावस्या

अकाल मृत्यु वालों का श्राद्ध इस दिन


जिन लोगों की अकाल मृत्यु हुई है उन लोगों के लिए 13 तारीख को श्राद्ध किया जाएगा.इसका खास ध्यान रखना पड़ेगा.बाकी लोगों के लिए 14 अक्टूबर को श्राद्ध अर्पण सकते हैं.


हमारे शरीर में वास करती हैं तीन पीढ़ियां




श्राद्ध करने वालों को यह भी जानकारी होनी चाहिए कि तीन पीढ़ियां हमारे शरीर में अप्रत्यक्ष रूप से वास करती हैं.हमारे माता-पिता,दादा-दादी,परदादा-परदादी, वृद्ध परदादा वृद्ध परदादी इन तीन सूक्ष्म प्राणियों का शरीर हमारे शरीर में रहता है और हमारा अधिकार तीन पीढ़ियों तक रहता है.राष्ट्रपति अवॉर्ड से सम्मानित पंडित प्रेम शर्मा ने बताया कि श्राद्ध को हम उसके प्रस्तुति समय में ही करें वह समय दोपहर के बाद का होता है. वह समय पितरों का समय होता है.उस समय के अनुरूप हमारा चलना अनिवार्य रहता है.


इन पशु-पक्षियों को करवाया जाता है भोजन


पंडित प्रेम शर्मा ने बताया कि श्राद्ध के समय हमें कौवे,गाय आदि के लिए भी भोजन निकालना होता है और यह पुराने समय से चला आ रहा है.श्राद्ध पद्धति हमें अपने पितरों से जोड़ती है.उन्होंने बताया कि श्राद्ध के जरिए ही हमें अपने पूर्वजों को याद करने का मौका भी मिलता है और हमें अपने पूर्वजों को याद करना चाहिए.


श्राद्ध में सोमवती अमावस्या का ख़ास महत्व


पंडित प्रेम शर्मा ने बताया कि श्राद्ध में विशेषता होता है कि अगर श्राद्ध में सोमवती अमावस्या आती है ऐसे में गया जी में श्राद्ध का जो महत्व है वही महत्व कैथल में है.जो कैथल में पिंडदान और दान भोजन आदि करवाते हैं उसका बहुत ज्यादा महत्व होता है. शास्त्रों में ऐसी मान्यता भी है कि अगर फल्गु जी में या गया जी में रहकर श्राद्ध किया जाए तो सभी फलों की प्राप्ति होती है.मान्यता है कि श्राद्ध के दिनों में नया काम नहीं करना चाहिए.नया घर नहीं खरीदना चाहिए और ना ही नया मकान आदि बनाना चाहिए.












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