सावन में शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने वाला नहीं रहता है निर्धन


रावण ने शिवजी की विशेष कृपा पाने के लिए शिव ताण्डव स्तोत्र की रचना कर अनेक सिद्धियां प्राप्त की थीं। इस स्तोत्र का सावन में नियमित रूप से पाठ करने वाला आशुतोष भगवान शिव की विशेष कृपा का पात्र होता है तथा धन-धान्य, सुख-सम्पत्ति से पूर्ण रहता है। भगवान शिव सायंकाल में प्रसन्न होकर भगवती त्रिपुर सुन्दरी को रत्न सिंहासन पर बैठाकर जब ताण्डव नृत्य करते थे, उस समय की स्थिति का वर्णन इस स्तोत्र में किया गया है। शिव ताण्डव द्वारा रावण शिवजी को प्रसन्न कर उनकी कृपा से शत्रु नाश एवं युद्ध में विजय प्राप्त कर अचल सम्पदा का स्वामी था। पाठकों की सुविधा हेतु पूर्ण शिव ताण्डव स्तोत्र नीचे प्रस्तुत है, प्रदोष के समय लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इसका पाठ अवश्य करें। सावन मास में प्रतिदिन शिव ताण्डव स्तोत्र का पाठ शिव आराधना में महत्वपूर्ण माना जाता है।


शिव तांडव स्तोत्र 








जटाटवी गलज्जल-प्रवाह-पावित स्थले, गलेऽवलम्य-लम्बितां-भुजंग तुङ-मालिकाम्।
डमड् डमड् डमड् डमन्निनादवड्-डमर्वयम्, चकार चण्ड ताण्डवं तनोतुनः शिवः शिवम्।
जटाकटाह संभ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी, विलोल वीचि वल्लरी विराजमान मूर्धनि।
धगद्धग द्धगज्वल्ललाट पट्ट पावके, किशोर चन्द्र शेखरे रतिःप्रतिक्षणं-मम
धरा धरेन्द्र नन्दिनी विलास बंधु बन्धुर, स्फुरद् दृगन्तसंतति प्रमोद मान मानसे।
कृपा-कटाक्ष धोरणी निरूद्ध दुर्धरा पदि, क्वचिद्गिम्बरे मनो विनोद मेतु वस्तुनि
जटा भुजंग पिंगल-स्फुरत् फणा-मणि-प्रभा, कदम्ब-कुंकुम-द्रव - प्रलिप्त - दिग्वधू-मुखे
मदान्ध - सिन्धुर - स्फुरत्- त्वगुतरीयमेदुरे मनो-विनोद-मद्भुतं विभर्तु भूत-भर्तरि
सहस्त्रलोचन प्रभृत्यशेषलेख - शेखरः, प्रसूनधूलि धोरणी विधूसरांध्रि पीठभूः।
भुजंग राज मालया, निबद्ध जाट-जूटकः, श्रियै चिराय जायतां चकोर-बन्धु शेखरः
ललाट चत्वर ज्वलद्धन´जय स्फुलिंगभा, निपीत पंच सायकं, नमन्निलिम्पनायकम्।
सुधा-मयुरव - लेखया-विराजमान शेखरः, महाकपालि सम्पदे शरोजटालमस्तु नः।।
कराल -भाल-पट्टिका - धगद्धगद्धगज्जवल, द्धन´जयाहुतिकृत - प्रचण्ड-प०च सायके।
धराधरेन्द्र नंदिनी कुचाग्र-चित्र-पत्रक, प्रकल्पनैक शिल्पिनि त्रिलोचने-रति र्मम
नवीन मेघ-मण्डली निरूद्ध-दुर्धर-स्फुरत्, कुहू निशीथिनी-तमः-प्रबन्ध-बद्ध-कन्धरः।
निलिम्प-निर्झरी धर स्तनोतु कृत्ति-सुन्दरः, कलानिधान बन्धुरः श्रियं जगद्धुरन्धरः
प्रफुल्ल-नील-पंकज -प्रप´च - कालिमप्रभा, विडम्बिकण्ठ- कंधरारूचि- प्रबद्ध-कंधरम्।
स्मरच्छिदं-पुरच्छिदं भवच्छिदं - मखच्छिदम्, गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे
अखर्व-सर्व-मंगला - कला-कदम्ब- मन्जरी- रस प्रवाह-माधुरी - विजृम्भणामधुव्रतम्।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकम्, गजान्धकान्तकांन्तकं तमन्तकान्तकं भजे
जयत्यदभ्र -विभ्रम - भ्रमद्-भुजंगम-स्फुरद्, धगद्धगद् विनिर्गमत्-कराल-भाल हव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धिमिद्ध्वनन्- मृदंगतुमुङ मंगल, ध्वनि-क्रम-प्रवर्तित-प्रचण्ड - ताण्डवः शिवः
दृषद्-विचित्र-तल्पयोःभुजंग-मौक्तिक स्त्रजोः, गरिष्ठ-रत्न-लोष्ठयोः सुहृद्-विपक्ष-पक्षयोः।
तृणारविन्द - चक्षुषोः प्रजामही- महेन्द्रयोः समः प्रवृत्तिकः कदा सदा शिवं भजाम्यहम्
कदा निलिम्प निर्झरी निकु´जकोटरेवसन्, विमुक्त-दुर्मतिः सदा, शिरस्थम´जलिंवहन्।
विमुक्त - लोल-लोचनो, ललामभाललग्नगः, शिवेति मन्त्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम्।।
निलिम्पनाथनागरी कदम्ब मौलि मल्लिका निगुम्फ निर्झरक्षरन्मधूष्णिकामनोहर।
तनोतु नः मनोमुदं विनोदनी महर्निशम् परिभ्रमन् परंपदंतदंगजस्त्विषां चयः
पूजावसान - समये - दशवक्त्र - गीतम्, यः शंभु - पूजन-मिदं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथ गजेन्द्र-तुरंग युक्ताम्, लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाति शंभुः।

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